राजनीति

जब कल्याण सिंह ने रोते हुए कहा था ‘मेरी कामना है कि मेरा शव बीजेपी के झंडे में लिपट कर जाए : देखें वीडियो

कल्याण सिंह भाजपा के एक कद्दावर नेता थे। जिनका 89 साल की उम्र में निधन हो गया है। वहीं सोशल मीडिया में उनका एक वक्तव्य तेजी से वायरल हो रहा है। जिसमें वे कहते हैं कि, “संघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्कार मेरे रक्त के बून्द-बून्द में समाए हुए हैं और इसलिए मेरी इच्छा है कि मैं जीवनभर भाजपा में रहूं और जीवन का जब अंत होने को हो, तो मेरा शव भी भारतीय जनता पार्टी के झंडे में लिपटकर जाएं।

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” बता दें कि ये बातें कहते हुए कल्याण सिंह की आँखों में आंसू देखा जा सकता है, लेकिन एक समय कल्याण सिंह के जीवन में ऐसा भी आया। जब उन्होंने भाजपा को छोड़ दिया। बता दें कि प्रखर हिन्दूवादी नेता कल्याण सिंह ने 2009 में अनबन की वज़ह से पार्टी छोड़ दी थी और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में एटा से चुनाव लड़ा था। उस समय सपा ने उनका समर्थन किया था। लेकिन भाजपा से उनका विरह ज़्यादा समय नहीं टिक सका।

 


फ़िर समय आता है साल 2014 का। माल एवेन्यू के अपने आवास पर कल्याण सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। उन्हें बीजेपी में दुबारा आए कुछ महीने ही हुए थे। इस दौरान कल्याण ने मोदी की अगुवाई की तारीफ की और कहा कि 2014 में बीजेपी प्रचंड बहुमत से जीतेगी। ये बातें कहकर कल्याण सिंह चुप ही हुए थे कि उनसे एक पत्रकार तपाक से सवाल पूछता है कि, “आपने तो बीजेपी को मरा हुआ सांप बताया था, अब उसे कैसे गले मे लटका रहे हैं?

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” गौरतलब हो कि पत्रकार का यह  सवाल कल्याण सिंह को चुभा तो, लेकिन कल्याण सिंह न तो आक्रामक हुए और न ही सवाल नजरंदाज किया। इसके बाद कल्याण सिंह संयत स्वर में बोले कि, “मेरी गलती थी, मुझसे पाप हुआ। मैं फिर सबसे क्षमा मांगता हूं।” इसके आगे कल्याण ने फिर वह बात दोहराई जो बीजेपी में वापसी के दौरान हुई रैली में रुंधे गले से कहा था ‘मेरी यही कामना है कि मेरा शव बीजेपी के झंडे में लिपट कर जाए।” दरअसल, सहजता व शिष्टाचार कल्याण की सियासत का स्थायी भाव था। वह कहते थे कि, “सत्ता बदले के लिए नहीं है।”

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वही एक किस्सा 1998 का है। जब तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर जगदंबिका पाल को सीएम बना दिया। 48 घंटे के भीतर पाल पैदल हो गए और कल्याण फिर सीएम बने यह जगजाहिर किस्सा है। उस समय आरएस माथुर यूपी के मुख्य सचिव थे और इकलौते अधिकारी जो एक ही साथ पाल और कल्याण दो मुख्यमंत्रियों के सचिव थे। अपनी किताब ‘क्राफ्ट ऑफ पॉलिटिक्स : पॉवर फॉर पैट्रेनज’ में माथुर लिखते हैं कि जगदंबिका पाल कोर्ट के उस फैसले की कॉपी के लिए अड़े थे, जिसमें उनकी नियुक्ति अवैध बताई गई थी। इसके बिना वह सीएम दफ्तर छोड़ने को तैयार नहीं थे। दूसरी ओर कुछ बीजेपी विधायकों का मत था कि उन्हें जबर्दस्ती कमरे से बाहर किया जाए।

जब जगदंबिका पाल बनें एक दिन के सीएम…

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इसी बीच कुछ प्रभावशाली लोगों ने कहा कि कल्याण सिंह के फिर से सीएम नियुक्त होने का राजभवन से आदेश जारी हो। माथुर ने इस बार में जब विधि अधिकारी एनके महरोत्रा से पूछा तो उन्होंने कहा कि जब जगदंबिका पाल की नियुक्ति ही अवैध है तो कल्याण सिंह का कार्यकाल ब्रेक ही नहीं हुआ। ऐसे में वह सीएम बने हुए हैं। बड़ा सवाल यह था कि यह संदेश मीडिया व जनता तक कैसे दिया जाए कि कल्याण की बहाली हो चुकी है। दबाव इतना था कि व्यवस्था कभी भी अराजकता की ओर बढ़ सकती थी।

फ़िर कैबिनेट की मीटिंग से निकला रास्ता…

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वहीं मंथन के बाद रास्ता निकला और आरएस माथुर ने कल्याण सिंह से अनुरोध किया कि यदि वह कैबिनेट की बैठक कर लें तो उसका प्रेसनोट जारी कर दिया जाएगा, इससे सारा संदेश स्पष्ट हो जाएगा। कल्याण ने सहजता से यह बात स्वीकार कर ली और जगदंबिका पाल ने भी सीएम दफ्तर छोड़ दिया। एक बड़े कद का राजनेता जिसकी सीएम कुर्सी जबर्दस्ती छीन ली गई थी उनकी परिपक्वता ने सहजता से एक बड़ा संकट टाल दिया।

जब मुख्य सचिव से कहा- ये तमाशा तत्काल बंद कराइए…

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कल्याण की बर्खास्तगी के सूत्रधार रहे तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी कल्याण के फिर कुर्सी पर बैठने के कुछ दिन बाद ही नैनीताल (तब उत्तराखंड नहीं बना था) गए। भंडारी के फैसले से नाराज कुछ कार्यकर्ताओं की भीड़ ने उनकी गाड़ी रोक ली, उन्हें आगे जाने ही नहीं दिया। स्थानीय प्रशासन ने यह कहकर हाथ खड़े कर दिए कि राज्यपाल के आने की पूर्व सूचना नहीं थी।

चीफ सेक्रेटरी से राज्यपाल ने जाहिर की नाराजगी…

रोमेश भंडारी ने मुख्य सचिव आरएस माथुर को फोन कर नाराजगी जाहिर की। माथुर ने फोन रखा ही था कि दूसरा फोन सीएम कल्याण सिंह का था। उनके स्वर रोमेश भंडारी से ज्यादा तल्ख थे। उन्होंने साफ शब्दों में कहा की, “यह तमाशा तत्काल बंद कराइए, पद की गरिमा का सम्मान हर-हाल में होना चाहिए।” कल्याण के तेवर से अफसरों के पसीने आ गए और कुछ ही देर में भंडारी के काफिले का रास्ता साफ हो गया।

हमेशा कार्यकर्ताओं के ‘बाबूजी’ रहे कल्याण…

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आसमान सा कद हासिल करने के बाद भी जमीन पर पांव और विनम्रता की छांव कल्याण ने कभी हटने नहीं दी। यही कारण था कि वे हमेशा कार्यकर्ताओं के बाबूजी रहे। जब उनका गला रूंधा तो उनके हजारों-लाखों समर्थकों के आंसू छलके। जब उन्होंने मंच से दहाड़ा तो जोशीले नारों व तालियों का शोर गगनभेदी रहा। कल्याण के साथ सियासत में बड़े मन और सहजता के एक युग का भी अवसान हो गया।

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