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चेहरे पर थे 13 टांके, फिर भी इस कारण बॉक्सिंग खेलने रिंग में उतर गए थे सतीश कुमार

भारतीय मुक्केबाज सतीश कुमार क्वार्टर फइनल में हार गये, हालांकि इसके बावजूद लोग उन्हें कॉल कर ऐसे बधाईयां दे रहे हैं जैसे वे मैच जीत गए हो। यहां तक कि सतीश कुमार के विपक्ष बाक्सर विश्व चैम्पियन बखोदिर जालोलोव ने भी भारतीय मुक्केबाज की तारीफ़ों के पूल बांधे। दरअसल सतीश जब जालोलोव से मुकाबला कर रहे थे तब उनके चेहरे पर 13 टांके लगे हुए थे। उनके माथे और ठोड़ी से खून बह रहा था जिसे रोकने के लिए ये टांके लगाए गए थे।

satish kumar

इतने अधिक चोटिल होने के बावजूद सतीश कुमार ने जिस बहादुरी से ये मुकाबला किया वह देखने लायक था। लोग इसी के कायल हो गए। उनका जज्बा और जुझारुपन अपने आप में दूसरों के लिए एक मिसाल बन गया है। हेवीवेट बॉक्सिंग के मुकाबले जानलेवा हो सकते हैं, लेकिन सतीश मुंह पर 13 टांके होने के बावजूद रिंग में उतरे, जबकि उन्हें ऐसा करने से पत्नी और पिता ने मना किया था।

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पिता ने कहा था कि बेटे को इस तरह देखना काफी दर्दनाक साबित हो सकता है। तो अब सवाल ये उठता है कि आखिर  दो बच्चों के पिता सतीश ने इतना बड़ा जोखिम क्यों उठाया?

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सतीश के ये रिस्क लेने की वजह मुकाबले में मिलने वाला मेडल या इनाम का लालच नहीं था। बल्कि ऐसी विपरीत स्थिति में भी उनके दिमाग में बस यही चल रहा था कि ‘एक खिलाड़ी को कभी हार नहीं मानना चाहिए।’ यह वह कुछ शब्द थे जिसके चलते वह गंभीर रूप से चोटिल होने के बाद भी रिंग में उज्बेकिस्तान के सुपरस्टार मुक्केबाज बखोदिर जालोलोव से भीड़ गए थे।

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इस बारे में सतीश बताते हैं कि ‘मेरी ठोड़ी पर 7 और माथे पर 6 टांके लगे थे। इस मैच में हिस्सा लेकर मैं मरता या नहीं ये नहीं जनता था लेकिन मैं इतना जरूर जानता था कि मुझे लड़ना है। यदि नहीं लड़ूँगा तो जिंदगीभर इसी पछतावे में जीत रहूँगा कि यदि लड़ लेता तो क्या होता? अब मैं शांत और खुद से संतुष्ट हूं। मैं जानता हूं कि मैंने अपना बेस्ट दिया।’

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वैसे सतीश कुमार के लड़ने का निर्णय सही भी रहा। उनके इस जज्बे और हौसले की हर कोई सराहना कर रहा है। बुलंदशहर निवासी सतीश बताते हैं कि विपक्षी बॉक्सर जोलोलोव मैच के बाद मेरे पास आए और बोले- अच्छा मुकाबला था। यह सुन मुझे अच्छा लगा। मेरे कोचों ने भी बोल कि उन्हें मुझ पर नाज है। किसी को उम्मीद नहीं थी कि मैं यहां तक पहुंच जाऊंगा।’

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सतीश आगे कहते हैं कि मेरे फोन बंद होने का नाम नहीं ले रहा है। लोग मुझे ऐसे बधाई दे रहे हैं जैसे मैं मैच जीत गया हूं। मेरा इलाज तो चल रहा है, लेकिन मुझे पता है कि मेरे चेहरे पर कितने घाव हैं।’ सतीश कुमार दो बार एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीत चुके हैं। वे राष्ट्रमंडल खेलों के सिल्वर मेडल विनर और राष्ट्रीय चैम्पियन भी हैं। वे इंडिया के पहले हेवीवेट मुक्केबाज हैं जिन्होंने ओलंपिक में क्वालिफाई किया है। वे पहले कबड्डी खिलाड़ी थे, फिर सेना में भी रहे। यहां सेना के कोच ने उनका टेलेंट पहचान उन्हें मुक्केबाजी में शामिल कर लिया।

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