राजनीति

आम आदमी पार्टी क्या घर-घर राशन देने के नाम पर भ्रष्टाचार को देना चाहती है बढ़ावा?

सरकारी अनाज बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं के बीच बांटने की हो रही राजनीति

अन्ना आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी लगातार विवादों में बनी रहती है। राजनीति में जिस उद्देश्य को लेकर यह पार्टी आई, शायद उससे वह कोसों दूर जा चुकी है। ऐसा कहने का स्पष्ट कारण है। आप 2012 के दौरान अन्ना आंदोलन को ही ले लीजिए और आज 2021 में आम आदमी पार्टी को। दोनों के विज़न में काफ़ी अंतर समझ आता है। जो पार्टी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर राजनीति में आई। आज वही भ्रष्टाचार में संलिप्त होती जा रही है। इतना ही नहीं आम आदमी पार्टी अब पारदर्शिता रखने में भी विश्वास नहीं रखती। केजरीवाल सरकार अब तुष्टिकरण की राजनीति में कांग्रेस को भी पीछे छोड़ती नज़र आ रही है। जी हाँ हालिया दौर के मामले को ले लीजिए दिल्ली सरकार केंद्र से मिलने वाले अनाज का वितरण नहीं कर रही है। इसका कारण सुनकर आप भी अचंभित रह जाएंगे।

बता दें कि दिल्ली सरकार उन बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या मुसलमानों को भी अनाज देना चाहती है, जो दिल्ली में ओखला के पास अवैध रूप से बसाए गए हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि ओखला के विधायक अमानतुल्लाह खान इन घुसपैठियों और रोहिंग्याओं को संरक्षण दे रहे हैं। दूसरा कारण है कि केजरीवाल सरकार अनाज वितरण करने के माध्यम से अनाज माफिया को लाभ पहुंचाना चाहती है। अब सोचिए की केजरीवाल सरकार का यह कैसा शासन है। जो भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर राजनीति में आई, वही पार्टी पारदर्शिता जैसे शब्द को ठेंगा दिखा रही है। वैसे भी अमानतुल्लाह खान जैसे विधायक लगातार विवादों में बनें रहते है।

door to door rashan distribution

मालूम हो कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार घर-घर राशन बंटाने की योजना बना रही है। सोचिए जिस दौर में एक देश एक राशन कार्ड की बात हो रही। फ़िर घर घर राशन बंटाने का क्या तुक? लेकिन क्या करें साहब! राशन कार्ड से अनाज़ बाटेंगे तो धंधलेबाज़ी की संभावना नहीं रह पाएंगी, फ़िर उनके आका रूठ गए तो चुनावी चंदा और वोटबैंक कहाँ से मिलेगा? इसीलिए आम आदमी पार्टी घर-घर जाकर राशन देने की पहल पर ज़्यादा जोर दे रही है। सोचिए अगर आम आदमी पार्टी को इस राशन काण्ड से फ़ायदा नहीं होता तो वह केंद्र प्रायोजित स्कीम को अपने नाम से क्यों प्रचारित-प्रसारित करती। बता दें की घर- घर राशन पहुंचाने की योजना पर रोक लगाए जाने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि केंद्र सरकार दिल्ली में इस योजना को लागू होने दे।

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एक बात तो तय है कि बिना आधार कार्ड राशन बँटेगा तो वह किसे मिला और कैसे मिला। यह तय कर पाना संभव नहीं। दिल्ली सरकार भी यही चाहती है ताकि वह घुसपैठियों को राशन उपलब्ध करा सकें। तभी तो दिल्ली सरकार राशन की दुकानों पर लगी इलेक्ट्रानिक प्वाइंट आफ सेल (ईपीओएस) मशीनों का प्रमाणीकरण भी नहीं करवा रही है। और केंद्र सरकार तो यही कह रही है कि ईपीओएस मशीन ठीक कराकर अनाज बांटो, किसने रोका है। इन सबको देखते हुए ही 11 जून को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आरोप लगाया है कि दिल्ली सरकार राशन माफिया के इशारे पर काम कर रही है। उन्होंने यह भी पूछा है कि, ‘‘दिल्ली में राशन की दुकानों में अप्रैल, 2018 से अब तक ईपीओएस मशीनों का प्रमाणीकरण शुरू क्यों नहीं हुआ?’’

बता दें कि ईपीओएस मशीन के माध्यम से आधार कार्ड को जोड़कर लोगों की पहचान करने के बाद ही उन्हें राशन दिया जाता है। दिल्ली, पश्चिम बंगाल और असम को छोड़कर हर राज्य में इसी तरह से लोगों को राशन मिल रहा है। असम में आधार कार्ड बनने का काम बहुत देर से शुरू हुआ है, इसलिए वहां इस पद्धति से राशन नहीं दिया जा रहा है, जबकि दिल्ली और पश्चिम बंगाल में ऐसी कोई बात नहीं है। इसके बावजूद ये दोनों राज्य इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। इसी विषय पर दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता नवीन कुमार कहते हैं कि दिल्ली सरकार को राशन माफिया चला रहा है, इसलिए सरकार राशन वितरण में पारदर्शिता नहीं रखना चाहती है।

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कुछ भी हो, लेकिन दिल्ली सरकार की नीति और नीयत दोनों पर सवाल तो खड़े होते है कि आखिर वह ईपीओएस मशीन के माध्यम से आधार कार्ड को जोड़कर लोगो को राशन उपलब्ध कराने में आनाकानी क्यों कर रही है? अगर दिल्ली सरकार की नीयत सही है तो ईपीओएस मशीन के माध्यम से राशन जनता को उपलब्ध कराने में क्या समस्या है? एक बात और पश्चिम बंगाल और दिल्ली में ही क्यों ईपीओएस मशीन से राशन देने में समस्या आ रही है। क्या कभी आपने ठंडे दिमाग से सोचा है? नहीं सोचा तो अब सोचियेगा? पश्चिम बंगाल में भी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं की बड़ी तादाद है, जो ममता सरकार का बड़ा वोटबैंक है। वही अमानतुल्लाह खान भी अब दिल्ली में इसी राह पर चल निकलें है।

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उल्लेखनीय है कि भारत सरकार पूरे देश में दो रुपए प्रति किलो गेहूं और तीन रुपए प्रति किलो चावल उपलब्ध कराती है। चावल का वास्तविक दाम 37 रु. और गेहूं का 27 रु. प्रति किलो है। भारत सरकार सब्सिडी देकर राशन की दुकानों के माध्यम से वितरण के लिए राज्यों को खाद्यान्न देती है। केंद्र सरकार इस पर हर साल लगभग 2,00,000 करोड़ रु. खर्च करती है। यह सब इसलिए किया जाता है कि हर गरीब तक अनाज पहुंचे, लेकिन केजरीवाल हैं कि हर चीज में राजनीति करना चाहते हैं। राजनीति करें वहाँ तक ठीक है, लेकिन ऐसी राजनीति किस काम की जिससे देश के बाहर के लोगो का भला हो। भूल गए हो तो याद दिला दें कि पिछले साल केजरीवाल सरकार ही थी, जो दूसरे राज्य के लोगों को ईलाज कराने दिल्ली न आने तक की बात कही थी और आज है कि वही सरकार घुसपैठियों और रोहिंग्याओं के साथ खड़ी दिख रही है, आख़िर यह कैसी राजनीति और देशप्रेम? इसे आम जनता को समझना चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं कि जो पार्टी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर सक्रिय राजनीति में आई, वही आज हमारा हाथ भ्रष्टाचारियों के साथ नारे को तो बुलंद नहीं कर रही है?

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वैसे दिल्ली सरकार की अगर नीयत सही है तो वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कार्यप्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसमें सुधार से संबंधित शांता कुमार समिति की सिफारिश को लागू करने पर विचार क्यों नहीं करती। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में सुधार पर बनी शांता कुमार समिति ने यह सिफारिश की है कि भारत में पीडीएस में रिसाव के उच्च स्तर को देखते हुए खाद्यान्नों के भौतिक वितरण की बजाय लाभार्थियों के बैंक खातों में नगद हस्तांतरण यानी कैश ट्रांसफर किया जाना चाहिए। अब इस सुझाव पर गंभीरता से विचार करने का वक्त आ गया है। लाभार्थियों के खाते में कैश ट्रांसफर से कई फायदे होंगे। साथ ही साथ पीडीएस में व्याप्त भ्रष्टाचार में कमी आएगी और लीकेज कम होगा। अगर केजरीवाल सरकार की नीयत सही होती तो केंद्र से इसकी सिफारिश भी तो कर सकती थी, लेकिन जब किसी के दिल में ही खोट हो तो उसका क्या किया जा सकता है। वैसा ही कुछ राशन वितरण को लेकर दिल्ली सरकार का रवैया लग रहा है।

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