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‘संविधान से बढ़कर नहीं हैं पर्सनल बोर्ड, जहां महिलाओं का सम्मान नहीं होता वह सभ्य समाज नहीं’

मंगलवार को तीन तलाक से जुड़े एक मामले पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि कोई भी पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं है, कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक जैसी व्यवस्था संविधान का उल्लंघन है, क्योंकि इससे महिलाओं के मूल मानवाधिकारों का हनन होता है, कोर्ट ने नई व्यवस्था देते हुए कहा कि पर्सनल लॉ के नाम पर महिलाओं के बेसिक ह्यूमन राइट्स का उल्लंघन नहीं हो सकता है. गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह व्यवस्था वाराणसी में एक तीन तलाक के मामले के बाद दहेज उत्पीड़न के मामले में सुनवाई के दौरान दी है.

जहां महिलाओं का सम्मान नहीं है वह सभ्य समाज नहीं :

कोर्ट ने सामाजिक व्यवस्थाओं पर प्रहार करते हुए कहा कि जहां महिलाओं का सम्मान नहीं है वह सभ्य समाज नहीं है. कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक जैसी व्यवस्था से मौलिक अधिकारों का हनन होता है, कोर्ट ने उल्लेख किया कि इससे संविधान के अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 21 में दिए गए नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है.

कोई भी पर्सनल लॉ संविधान के दायरे में ही लागू हो सकता है :

कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कोई भी मुस्लिम पति ऐसे तरीके से तलाक नहीं दे सकता, जिससे समानता और जीवन के मूल अधिकारों का हनन होता हो, कोई भी पर्सनल लॉ संविधान के दायरे में ही लागू हो सकता है. इसके अलावा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसा कोई भी फतवा मान्य नहीं है जो न्याय व्यवस्था के खिलाफ हो.

आपको बता दें कि यह आदेश हाई कोर्ट के जज जस्टिस एसपी केसरवानी की एकल बेंच ने दिया है, उन्होंने यह आदेश तीन तलाक की पीड़ित वाराणसी की सुमालिया के पति अकील जमील की याचिका खारिज करते हुए दिया. अकील जमील ने उसके खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न के मामले को रद्द किये जाने की अपील की थी. जिसे बेंच ने खारिज कर दिया. अकील ने याचिका में कहा था कि उसने अपनी पत्नी सुमालिया को तलाक दे दिया है और दारुल इफ्ता जामा मस्जिद आगरा से फतवा भी ले लिया है. इस आधार पर उसने अपने खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीडन के मुकदमे को रद्द किये जाने की मांग की थी.

कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि फतवे का कोई कानूनी आधार नहीं है, इसलिए इसे जबरन थोपा नहीं जा सकता है, और ऐसे में अगर कोई इसे लागू करने का प्रयास करता है तो यह अवैध है. कोर्ट ने कहा कि फतवे को कोई कानूनी बल नहीं मिला है.

गौरतलब है कि इस समय तीन तलाक का मुद्दा पूरे देश में जोर शोर से गरमाया हुआ है, ऐसे में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा दी गई यह व्यवस्था बेहद अहम है, आपको बता दें कि 30 मार्च को तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बहस के बाद मुद्दा 5 जजों की संवैधानिक बेंच को सौंपा था, जिसपर 11 मई को सुनवाई होनी है.

इस मुद्दे पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का रुख यह है कि तीन तलाक औरतों को मुसीबतों से बचाने के लिए है और हम दूसरों के धर्म में दखल नहीं देते तो दूसरे धर्म के लोग भी हमारे मजहब में दखल ना दें. उनका कहना है कि तलाक का मामला शरियत के हिसाब से ही रहेगा जब कोर्ट इसमें कोई नई व्यवस्था देगा तब बोर्ड इसे देखेगा.

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