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इस सिविल इंजिनियर ने आरक्षण हटाने के लिए HRD मिनिस्टर को कर दिया मजबूर, देखें वीडियो!

इस देश में मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू हुईं और देश को जातिगत आरक्षण की आग में झोंक दिया गया, आज स्थितियां यह है कि जो बच्चे 12वीं और ग्रेजुएशन तक जिगरी दोस्त रहते हैं, कम्पटीशन की दौड़ और रिजर्वेशन के भेदभाव के चलते एक समय के बाद एक दूसरे की शक्ल देखना भी नहीं पसंद करते हैं.

हालांकि आरक्षण की जरूरत को हम नकार नहीं सकते. लेकिन वर्तमान में लागू आरक्षण व्यवस्था कई मायनों में सही और सर्व स्वीकार्य नहीं हैं. इसमें बहुत सी खामियां है जिसका भुगतान किसी और को नहीं बल्कि जनरल केटेगरी के कैंडिडेट्स को करना पड़ता है. इस बात का दर्द अकसर उनकी बातों में झलकता भी है.

देखिये वीडियो-


दूसरी तरफ देश में कई सशक्त जातियां भी आरक्षण की मांग करने लगी हैं, ऐसे में लगता है कि कहीं राजनैतिक दल अपने फायदे के लिए कुछ और जातियों को आरक्षण देकर इस कुएं को खाई में न बदल दें. ऐसे ही एक इंजीनियरिंग की पढाई किये व्यक्ति ने एक ऐसा काम किया जिसके बाद मानव संसाधन मंत्री को आरक्षण हटाने के लिए बिल लाने पर विचार करना पड़ गया.

उसने क्या किया और कैसे किया यह तो आप इस वीडियो में देख सकते हैं, लेकिन उसकी दलीलें और उसके तर्कों को कोई नकार नहीं सकता है. वह आरक्षण की आग का मारा एक ऐसा स्टूडेंट है जो मेरिट लिस्ट में होते हुए भी एडमिशन नहीं पा सकता, जो योग्य होते हुए भी व्यवस्था के कारण अयोग्य है. आरक्षण व्यवस्था की खामियों के चलते अगर किसी योग्य कैंडिडेट को भी घर बैठना पड़े तो इसका दुःख शायद आप समझते होंगे.

हालांकि यह एक पैरोडी वीडियो है जो कि नीरज पाण्डेय के निर्देशन में साल 2008 में आई फिल्म A Wednesday की तर्ज पर बनाया गया है, वैसे तो आप इस वीडियो को देखकर हसेंगे, लेकिन कहीं न कहीं इसमें एक ऐसे जनरल कैंडिडेट का दर्द छिपा है जो आरक्षण की मार झेल रहा है और एक दिन कुछ कर गुजरने को तैयार हो जाता है. गौरतलब है कि लम्बे समय से देश में जातिगत आरक्षण की नीतियों पर समीक्षा करने की जरूरत है. लोगों का मानना है कि देश की आजादी को 70 साल से अधिक हो गए. ऐसे में आरक्षण जातिगत नहीं आर्थिक आधार पर होना चाहिए.

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