अध्यात्म

अगर आप भी बचना चाहते हैं जीवन में आने वाले दुखों से तो भगवान से भूलकर भी ना मांगें ये चीजें!

बहुत पहले की बात है एक नगर में दो दोस्त रहते थे। उनमें से एक लंगड़ा था और दूसरा देखने में असमर्थ था। दोनों की कोई ना कोई कमजोरी थी। इसलिए दोनों एक दूसरे की मदद करते थे। इस तरह से वह दोनों नगर में घूमकर भिक्षा मांगते थे। दोनों बहुत पक्के मित्र थे, लेकिन कभी-कभी दोनों आपस में विवाद भी कर लिया करते थे।

लड़कर दोनों असहाय पड़े थे:

यह बात दोनों को पता थी कि एक दूसरे के बगैर किसी का काम नहीं चल सकता है, इसलिए दोनों अपने झगड़े को जल्दी सुलझा लेते थे। एक दिन दोनों के बीच विवाद इतना ज्यादा बढ़ गया कि दोनों लड़ पड़े और हाथापाई करने लगे। दोनों एक दूसरे से पिटाई करने के बाद असहाय होकर इधर-उधर पड़े थे। उन दोनों को ऐसी स्थिति में देखकर भगवान को बड़ा दुःख हुआ।

भगवान ने सोचा उन्हें वरदान देने के बारे में:

भगवान ने सोचा कि अगर अंधे को आंख और लंगड़े को पैर दे दिया जाए तो दोनों का जीवन अच्छे से बीतेगा। यह सोचकर भगवन धरती पर आये और सबसे पहले अंधे के पास गए। उन्हें लगा कि अंधा सबसे पहले आंख ही मांगेगा। जैसे ही भगवान ने उससे कहा कि मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हुआ हूं, तुम मुझसे कोई एक वर मांगो।

अंधे ने लंगड़े को भी अंधा होने का वरदान मांगा:

यह सुनकर अंधे ने कहा कि भगवान मैं अपने लंगड़े साथी से बहुत दुखी हूं, आप उसे भी अँधा कर दीजिये। यह सुनकर भगवान को बहुत आश्चर्य हुआ। वह लंगड़े के पास गए और उसने भी यही कहा कि भगवान वह अपने अंधे साथी से बहुत परेशान है, आप उसे भी लंगड़ा कर दीजिये। यह सुनकर भगवान ने तथास्तु कहा और वहां से गायब हो गए।

दूसरों की भलाई के लिए मांगने वाला नहीं होता कभी दुखी:

ऐसा करके दोनों लंगड़े और अंधे हो गए। दोनों पहले से ही काफी दुखी थे। एक दूसरे के लिए दुःख मांगा तो और भी दुखी हो गए। जबकि अगर दोनों अपने-अपने लिए आंख और पैर मांगते तो दोनों सुखी हो सकते थे। मनुष्य हमेशा दूसरों के सुख से जलता है। जबकि अगर वह दूसरों की भलाई के लिए ईश्वर से मांगना शुरू कर दे तो ना ही वह दुखी होगा और ना ही संसार को कोई अन्य व्यक्ति।

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