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खत्म नहीं हुआ प्रकृति का प्रकोप, हिमालय के बाद पिघलते ग्लेशियर इन शहरों का अस्तित्व मिटा देंगे

रविवार को उत्तराखंड के चमोली जिले के ऋषिगंगा घाटी में ग्लेशियर टूटने से भारी तबाही मची है. इस घटना ने एक बार फिर इंसानों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया हैं. इसके साथ ही ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ गया हैं. भारत के इस पहाड़ी राज्य में पानी के रौद्र रूप को देखकर हर कोई सहम गया.इसके साथ ही सिर्फ भारत में नहीं दुनिया भर में भी ग्लेशियर से इंसानों पर खतरा बढ़ता ही जा रहा है. ग्रीनलैंड में भी ग्लेशियरों के पिघलने का खतरा लगातार बढ़ रहा है.

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक में बर्फ की परत लगभग हर वर्ष 400 अरब टन कम हो रही है. इससे न केवल समुद्र का जल स्तर बढ़ेगा, बल्कि दुनिया के कई देशों के प्रमुख शहरों के डूबने के खतरे की सम्भावना भी बताई गई है. जो शहर समुद्र के बढ़ते स्तर से ज्यादा प्रभावित होंगे उसमें भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई और कोलकाता का नाम भी शामिल हैं.

इसलिए पिघल रहे हैं दुनियाभर के ग्लेशियर


आपको बता दें कि दुनिया में तकरीबन 200000 के आसपास ग्लेशियर हैं. इनमे से अगर 1000 को छोड़ दिया जाए तो बाकी ग्लेशियरों का आकार बेहद छोटा है. आपको बता दें कि ग्लेशियरों की धरती पर पहचान मीठे पानी के भंडार के रूप में होती है. वातारवरण में प्रदुषण गाड़ियों में जीवाश्म ईंधनों का बेहताशा इस्तेमाल, ओजोन परत में छेद, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन, आबादी का लगातार बढ़ना आदि के कारण धरती के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. इसी के साथ आईपीसीसी ने तो यह चेतावनी तक दी है कि इस सदी के समाप्त तक हिमालय के ग्लेशियर अपनी एक तिहाई बर्फ खो देंगे. इसी के साथ कहा कि अगर प्रदूषण इसी तेज़ी से बढ़ता रहा तो यूरोप के 80 फीसदी ग्लेशियर भी 2100 तक पानी में बदल जाएंगे.

भारत के इन शहरों पर सबसे ज्यादा खतरा होने की सम्भावना हैं
इस मामले मे संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक पर्यावरण रिपोर्ट में चेताया है कि समुद्रतल में पानी का इजाफा होने से 2050 तक भारत के कई शहरों पर डूबने का खतरा बढ़ सकता है. इसमें भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई और कोलकाता जैसे बड़े शहर भी शामिल हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के लगभग 4 करोड़ लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं. इसके साथ ही नासा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक में तेजी से ग्लेशियरों के पिघलने से ग्रेडिअंट फिंगरप्रिंट मैपिंग (GFM) टूल से पता लगा है कि भारत के कर्नाटक का मंगलोर भी इससे बचेगा नहीं.

ग्लेशियरों के बिना रुके पिघलने से संपूर्ण मानव जन जाति पर इसका असर देखने को मिलेगा. दुनिया की अधिकतर आबादी आज भी साफ पानी के लिए ग्लेशियरों पर ही निर्भर है. इनके नहीं होने से पीने के पानी का सबसे बड़ा संकट दुनिया के सामने आन पड़ेगा. अगर ग्लेशियरों से पानी आना बंद हो जाएगा तो नेपाल, भारत, बांग्लादेश, भूटान,पाकिस्तान सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. सूखे की स्थिति से आम जनजीवन भी खतरे में पड़ सकता है.

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