अध्यात्म

संतोषी माता के व्रत-पूजन से खुशियों से भर जाएगा आपका जीवन

संतोषी माता आदि काल से सृष्टी में हैं। ये आदि शक्ति का ही एक रूप है। विभिन्न युगों में स्थाई सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए दीर्घकालीन साधनाएं की जाती रहीं हैं। कलियुग में इच्छाओं का रूप बदला है। छोटी-छोटी सांसारिक कामनाएँ और समस्याएं हैं। जिनका तत्काल निदान पाने के लिए कम समय वाले छोटे अनुष्ठान और त्वरित फल देने वाले देवी-देवताओं के परम भक्तों का आह्वान किया जाता है। हनुमान जी , भैरों जी, विभिन्न जुझार और सतियाँ इनमें शामिल है। माँ संतोषी आदि शक्ति की तीसरी पीढी या स्तर का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये विघ्न हरता परम संतुष्ट गणेश की पुत्री और शिव-शक्ति अर्थात शंकर और पार्वती की पौत्री हैं। ये किसी काम या कामना के तत्काल निदान के लिए पूजी जाती हैं। इसलिए इनके सोलह शुक्रवार की व्रत-पूजा का विधान है।

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संतोषी मां का शुक्रवार को पूजा का विधान रखा जाता है। इसी दिन संतोषी माता को प्रसाद के रूप में चने और गुड़ का भोग लगाया जाता है इससे भाव है कि जो वस्तु अथवा पदार्थ हमारे पास नहीं है उस के प्रति तृष्णा की भावना न रखे तो परिवार में सहज ही सम्‍पन्‍नता आने लगती है अन्यथा अपनी क्षमता से अधिक व्यय कर साधनों को अपेक्षा रखने वाले व्यक्ति से श्री और सम्पन्नता दूर होती जाती है।

संतोषी माता का व्रत फल

संतोषी माता का व्रत करने से निर्धनता, दरिद्रता का नाश होता है। लक्ष्मी आती है। मन की चिन्ताएं दूर होती है। घर में सुख होने से मन को प्रसन्नता और शान्ति मिलती है। निपूती को पुत्र मिलता है, प्रीतम बाहर गया हो तो शीध्र घर आ जाता है। क्वांरी कन्या को मन पसंद वर मिलता है, बहुत दिनों से मुकदमा चल रहा हो तो वो खत्म हो जाता है, कलह क्लेश की निवृति हो सुख-शान्ति का समावेश होता है।

अगले पेज पर पढें  संतोषी माता के पूजन और  व्रत कथा

 

पूजा और कथा

व्रत-पूजा के लिए माँ संतोषी के चित्र के सामने जल से भरे पात्र के ऊपर एक कटोरी में गुड और भुने हुए चने रखें। गुड-चने की मात्रा अपनी सहूलियत के अनुसार कुछ भी रख सकतें हैं, कम-ज्यादा का कोई विचार न करें। जितना बन पड़े श्रद्धा और प्रेम से प्रसन्न-मन व्रत करना चाहिए, क्यों कि माता तो भावना कि भूखी है। इस व्रत को करने वाला कथा कहते समय हाथों में गुड और भुने हुए चने रखे। सुनने वाले ‘संतोषी माता की जय’ मुख से बोलते जायें। सुनने वाला कोई न मिले तो दीपक जला कर उसके आगे या जल के पात्र को सामने रख कर कथा कहें। कथा पूरी होने पर आरती, भोग लगाने के समय की विनती और चालीसा का पाठ करें। कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड और चना गौमाता को खिलावें। कलश पर रखा गुड-चना सबको प्रसाद के रूप में बाटें। कलश के जल को घर में सब जगहों पर छिडकें, बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में सींच देवें।

उद्यापन

व्रत के उद्यापन में ढाई सेर खाजा, मोयमदार पुरी, चने कि सब्जी और खीर का भोग लगाना चाहिए। इस दिन कथा के समय नैवेद्य रखे घी का दीपक जला संतोषी माता कि जय जय कार बोल नारियल फोड़ना चाहिए । इस दिन खटाई न खावें, खट्टी वस्तु खाने से माता का कोप होता है। इसलिए उद्यापन के दिन भोग कि किसी सामग्री में खटाई न डालें। न आप खाएं, न किसी दुसरे को खानें दें। इस दिन आठ लड़कों को भोजन करावें। देवर-जेठ घर कुटुंब का मिलता हो पहले उन्हें बुलावें। न मिलें तो रिश्तेदारों, ब्राह्मणों या पड़ोसियों के लड़के बुलावें। भोजन कराने के बाद उन्हें यथा-शक्ति दक्षिणा देवें। नगद पैसे या खटाई कि कि कोई वस्तु न देवें। व्रत करने वाला कथा सुन एक समय भोजन-प्रसाद ले। इस प्रकार माता अत्यन्त प्रसन्न होंगी। दुख दरिद्रता दूर होकर चाही मुराद पूरी होगी।

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