अध्यात्म

संगम के किनारे आखिर क्यों लेटे हैं रामभक्त हनुमान? जाने इसके पीछे का रहस्य

भगवान श्रीराम के सबसे बड़े भक्त हनुमानजी का नाम सदैव चमत्कारों से जुड़ा रहा है। उन्होंने अपने बल और बुद्धि से कई चमत्कार किए हैं। फिर चाहे वो लक्ष्मणजी के लिए संजीवनी बूटी लाना हो या फिर सीने में बैठे राम सीता के दर्शन करवाना हो। हनुमानजी की गाथा ऐसे कई चमत्कारों से भरी हुई है।

ये तो हम सभी को पता है कि भगवान राम से ज्यादा मंदिर उनके भक्त हनुमानजी के हैं। हर गली मोहल्ले में हनुमानजी का मंदिर देखने को मिल जाता है। मगर उनके कुछ मंदिर ऐसे हैं, जो बेहद खास हैं। इन्हीं में से एक है संगम किनारे लेटे हनुमान मंदिर।

हनुमानजी का ये मंदिर बेहद खास है क्योंकि यहां पवन पुत्र हनुमान की प्रतिमा खड़ी नहीं है बल्कि लेटी हुई अवस्था में है। इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि संगम स्नान के बाद अगर इस मंदिर का दर्शन न किया जाए तो स्नान अधूरा होता है। खैर, आइए जानते हैं इस मंदिर में लेटे हनुमानजी का रहस्य और कैसे हुई है इस मंदिर की स्थापना…

ये है इस मंदिर का अनोखा रहस्य

दक्षिणाभिमुखी हनुमान जी की ये प्रतिमा 20 फीट लंबी है। साथ ही ये धरातल से 5-7 फीट नीचे दबी हुई है। संगम नगरी में इसे बड़े हनुमानजी, कीले वाले हनुमानजी और बांध वाले हनुमानजी के नाम से भी जाना जाता है।

मान्यता है कि हनुमानजी के इस प्रतिमा के बाएं पैर के नीचे कामदा देवी और दाएं पैर के नीचे अहिरावण दबा है। साथ ही इनके दाएं हाथ में राम लक्ष्मण और बाएं हाथ में गदा शोभित है। माना जाता है कि इस मंदिर में आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

लेटे हनुमान के रहस्य की अगर बात करें तो ये कहा जाता है कि जब रावण की सेना को हराकर हनुमान जी लंका से लौट रहे थे तो उन्हें थकान महसूस हुई तो विश्राम के लिए उन्होंने संगम तट को चुना और यहां आकर लेट गए। लिहाजा यहां लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर बना।

क्या है इस मंदिर का इतिहास..

यह मंदिर 600 से 700 वर्ष पुराना माना जाता है। कथाओं की माने तो कन्नौज के राजा की कोई सन्तान नहीं थी ऐसे में उनके गुरु ने ये उपाय बताया कि हनुमानजी की ऐसी प्रतिमा बनवाइए, जब वो राम और लक्ष्मण जी को नागपाश से छुड़ाने के लिए पातालोक में गए थे। साथ ही राजा के गुरु ने ये भी कहा कि हनुमानजी की प्रतिमा विंध्याचल पर्वत से बनवाकर लाना होगा।

इसके बाद जब कन्नोज के राजा हनुमानजी की प्रतिमा को विंध्याचल से नाव में लेकर आ रहे थे तो अचानक नाव टूट गई और प्रतिमा डूब गई। राजा दुखी मन से घर लौट आए।

कहा जाता है कि जब कुछ वर्षों बाद गंगा का जलस्तर घटा तो राम भक्त बाबा बालगीरी महाराज को ये प्रतिमा मिली और फिर वहां के राजा ने मंदिर का निर्माण करवाया।

मूर्ति को छू नहीं सके मुगल शासक

जब भारत में मुगल शासक आए तो उन्होंने हिन्दू मन्दिरों को तोड़ना शुरू कर दिया, लेकिन संगम किनारे स्थित इस मंदिर की प्रतिमा को मुगल सैनिक हिला भी नहीं सके। कहा जाता है कि जब मुगल सैनिकों ने इस प्रतिमा को उठाने की कोशिश की तो ये जमीन पर और धंसती चली गई। इसी वजह से ये मूर्ति 6 से 7 फीट नीचे दबी है।

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