Spiritual

भगवत गीता के इन सूत्रों को आजमाने से अनहोनी का हो जाता है अंदाजा, आजमा कर देखें

25 दिसंबर को पूरे देश में गीता जयंती धूमधाम से मनाई गई। हिंदू धर्मशास्त्रों में इस बात का उल्लेख किया गया है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कुरूक्षेत्र के रण में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। जिस दिन श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया, उस दिन मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी और तब से ही इस तिथि को गीता जयंती के रूप में हर साल मनाया जाता है।

आज हम इस आर्टिकल में आपको गीता के 5 लाइफ मैनेजमेंट सूत्रों के बारे में बताने वाले हैं। तो आइये जानते हैं, उन कौन से हैं वो 5 सूत्र…

श्लोक-1

विहाय कामान् य: कर्वान्पुमांश्चरति निस्पृह:।

निर्ममो निरहंकार स शांतिमधिगच्छति।।

अर्थ- जो मनुष्य अपनी इच्छाओं और कामनाओं को त्यागकर ममता रहित और अहंकार रहित होकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है, उसे ही शांति मिलती है।

मैनेजमेंट सूत्र- यहां भगवान श्रीकृष्ण के कहने का अर्थ ये है कि जिस मनुष्य के मन में किसी प्रकार की इच्छा व कामना होती है, उसे कभी सुख शांति प्राप्त नहीं होती। अतः सुख-शांति प्राप्त करने के लिए मनुष्य को सबसे पहले अपन मन से  इच्छाओं को हटाना होगा।

हम कर्म के साथ उसके मिलने वाले परिणामों को भी सोचने लगते हैं, लेकिन ऐसा करना हमें कमजोर बनाता है। मन से परिणाम, ममता और अहंकार इन सभी को निकालकर कर्तव्यों का पालन करने से ही मनुष्य को शांति मिलती है।

श्लोक-2

न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।

कार्यते ह्यश: कर्म सर्व प्रकृतिजैर्गुणै:।।

अर्थ- कोई भी इंसान क्षण भर भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता है। सभी प्राणी प्रकृति के अधीन हैं और प्रकृति अपने अनुसार हर प्राणी से कार्य करवाती है और उचित परिणाम भी देती है।

मैनेजमेंट सूत्र– जो इंसान बुरे परिणामों के डर से कुछ नहीं करता है, वो मूर्ख है। हालांकि खाली बैठना भी एक तरह का कर्म है, जिसका परिणाम हमें आर्थिक हानि, अपयश और समय की हानि के रूप में मिलता है।

धरती में मौजूद सभी जीव और प्रकृति परात्मा के अधीन होते हैं और परात्मा अपने अनुसार सभी से काम करवाती है। गीता के अनुसार कभी भी हमें अपने कर्म के प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए बल्कि अपनी क्षमता और विवेक के अनुसार हमेशा कर्म करते रहना चाहिए।

श्लोक-3

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मण:।

शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मण:।।

अर्थ– इस श्लोक का अर्थ है धर्म के अनुसार कर्म करना चाहिए। क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना ही श्रेष्ठ होता है। कर्म नहीं करने से तो शरीर का निर्वाह भी ठीक से नहीं हो पाता।

मैनेजमेंट सूत्र– श्रीकृष्ण अर्जुन के माध्यम से मनुष्यों को ये उपदेश देते हैं कि हर मनुष्य को अपने अपने धर्म के अनुसार कर्म करना चाहिए। जैसे विद्यार्थी का कर्म विद्या प्राप्त करना, सैनिक का कर्म देश की रक्षा करना। श्रेष्ठ वही होते हैं जो अपने धर्म के अनुसार कर्म करते हैं।

श्लोक-4

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:। 

स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।

अर्थ- भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि समाज में श्रेष्ठ पुरूषों का जो आचरण होता है, वही आचरण सामान्य पुरूष भी करते हैं। यानी श्रेष्ठ पुरूष जो कर्म करते हैं, वही कर्म सामान्य पुरूष भी अपने जीवन में करने लगते हैं।

मैनेजमेंट सूत्र- यहां भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि समाज के श्रेष्ठ पुरूषों को सदैव अपने पद व गरिमा के अनुसार कार्य करने चाहिए, क्योंकि श्रेष्ठ पुरूष के कार्यों को ही सामान्य जन अपना आदर्श मानते हैं। उदाहरण के तौर पर देखें तो एक संस्थान में जो कार्य उच्च अधिकारी करते हैं, वहां के दूसरे कर्मचारी भी वैसे ही कार्य करने लगते हैं।

श्लोक-5

न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्म संगिनाम्।

जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्त: समाचरन्।।

अर्थ- ज्ञानी पुरूष को हमेशा चाहिए कि कर्मों में आसाक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करें किंतु स्वयं परात्मा के  स्वरूप में स्थित हुआ और सब कर्मों को अच्छी प्रकार करता हुआ उनसे भी वैसे ही कराए।

मैनेजमेंट सूत्र- आज का दौर प्रतिस्पर्धा का दौर है। यहां हर कोई दूसरे को पछाड़कर अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहता है। ऐसे में अक्सर संस्थाओं में ये देखा जाता है कि जो चतुर होते हैं, वो अपना काम पूरा करके आगे निकल जाते हैं, लेकिन वे अपने साथी को काम टालने के लिए कहते हैं। मगर  श्रेष्ठ वही होता है, जो अपने कार्यों से दूसरे के लिए आदर्श बन जाए।

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