अध्यात्म

राजा दशरथ करना चाहते थे शनिदेव का अंत, लेकिन शनि ने इनको दे दिए थे 3 वरदान, पढ़े पौराणिक कथा

शास्त्रों में शनि ग्रह की दृष्टि को घातक बताया गया है और जिस भी व्यक्ति पर शनि देव की बुरी दृष्टि पड़ती है, उसका बुरा समय शुरू हो जाता है। यहीं वजह है कि लोग इस ग्रह से डरा करते हैं और इसे शांत रखने के उपाय करते रहते हैं। शनि ग्रह को शांत रखना बेहद ही सरल है और महज शनि देव की स्तुति को पढ़कर इन्हें प्रसन्न किया जा सकता है। शनि देव और राजा दशरथ से जुड़ी एक कथा का जिक्र पुराणों में किया गया है। जिसमें बताया गया है कि कैसे राजा दशरथ ने शनि देव को प्रसन्न किया था और शनि देव ने राजा दशरथ को तीन वरदान दिए थे। तो आइए जानते हैं इस पौराणिक कथा के बारे में

कहा जाता है कि एक बार राजा दशरथ ने ज्योतिषाचार्यों को अपने महल बुलाया था। ज्योतिषाचार्यों ने राजा दशरथ को बताया कि शनि देव कृत्तिका नक्षत्र के अंत में हैं और रोहिणी नद्यत्र को भेदकर जाने वाले हैं। जिसका फल अच्छा नहीं होगा और ऐसा होने से देव, दानवों और लोगों को कष्ट होगा। शनि देव के रोहिणी नद्यत्र को भेदकर जाने से पृथ्वी पर 12 साल के लिए सूखा भी पड़ जाएगा। ज्योतिषाचार्यों की ये बात सुनकर राजा दशरथ काफी परेशान हो गए और उन्होंने इस समस्या का हल ज्योतिषाचार्यों से मांगा। ज्योतिषाचार्यों ने हंसते हुए राजा दशरथ से कहा कि शनि देव को रोकने का कोई उपाय नहीं है। लेकिन राजा दशरथ ने हार नहीं मानी और ये अन्य महर्षियों से मिलें। इन्होंने महर्षियों को पूरी बात बताई। जिसपर महर्षियों ने इन्हें कहा कि इसका उपाय तो खुद ब्रह्मा जी के पास भी नहीं है।

कोई हल नहीं मिलने पर राजा दशरथ ने सोचा की वो खुद ही कुछ करेंगे। राजा दशरथ ने अपना दिव्य रथ निकाला और इसपर सवार हो कर ये सूर्य लोक के पार नक्षत्र मंडल में पहुंच गए। यहां पहुंचकर इन्हें शनि देव दिखें। जिनको देखकर इन्होंने तुरंत अपना दिव्यास्त्र निकाला और उसे धनुष पर रखकर चलाने की कोशिश की। राजा दशरथ को दिव्यास्त्र के साथ देख शनि देव ने उनसे कहा, आप ये क्या कर रहे हैं। तब राजा दशरथ ने पूरी बता बताई। जिसको सुनने के बाद शनि देव ने इनसे हंसते हुए कहा कि राजन! तुम्हारा साहस देखकर में खुश हुआ है। मुझसे हर कोई डरता है, मगर तुम साहसी हो। तुमसे मैं प्रसन्न हुआ हूं। इसलिए तुम मुझसे एक वर मांग सकते हो। तब राजा दशरथ ने बिना कोई देरी करे शनि देव से कहा कि जब तक सूर्य और चंद्रमा हैं, तब तक आप रोहिणी नक्षत्र को नहीं भेदेंगे। ये वर मैं आप से चाहता हूँ। शनि देव ने ये वर दे दिया।

इसके बाद राजा दशरथ काफी प्रसन्न हो गए। राजा दशराथ को प्रसन्न देख शनि देव ने कहा कि तुम मुझसे  एक और वर मांग लो, तब उन्होंने कहा ​कि धरती पर 12 साल तक कभी भी सूखा और अकाल न पड़े। शनि देव ने खुश होकर इस वर को भी दे दिया। तब राजा दशरथ ने शनि देव को नमस्कार किया और शनि देव की स्तुति करने लगे। जिसे शनैश्चर स्तोत्रम् के नाम से जाना जाता है। ये स्तुति सुन शनि देव और प्रसन्न हो गए, उन्होंने फिर से राजा से कहा कि वो एक और वर मांगे। तब राजा ने शनि देव से कहा कि वो कभी भी किसी को दुख ना दें। ये बात सुनकर शनि देव ने कहा कि वो ये वरदान नहीं दे सकते हैं। क्योंकि लोगों को उनके बुरे कर्मों की सजा देना उनका काम है। जो लोग अच्छे कर्म करेंगे मैं उन्हें अच्छा फल दूंगा, जो लोग बुरे कर्म करेंगे उनके दुख भोगना होगा। मैं तुम्हारी स्तुति से प्रसन्न हुआ हूं। इसलिए मैं तुम्हें ये वरदान देते हूं कि जो लोग ये स्तुति पढ़ेगें, मैं उन्हें कभी भी कष्ट नहीं दूंगा। इस तरह से शनि देव ने राजा दशरथ को तीन वरदान दिए। वहीं वरदान मिलने के बाद राजा दशरथ अयोध्या वापस लौट आए।

इसलिए शनि देव को प्रसन्न करने के लिए आप हर शनिवार को शनैश्चर स्तोत्रम् को पढ़ें। शनैश्चर स्तोत्रम् पढ़ने ये आपको शनि देव से किसी भी तरह की पीड़ा नहीं होगी।

शनैश्चर स्तोत्रम् –

अस्य श्री शनैश्चरस्तोत्रं दशरथः ऋषि शनैश्चरो देवता ।
त्रिष्टुप्‌ छंद। शनैश्चरप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥

कोणोऽन्तकारौद्रयमोऽख बभ्रुःकृष्णः शनि पिंगलमन्दसौरि ।
नित्य स्मृतो यो हरते पीड़ां तस्मै नमः श्रीरविनन्दाय ॥ 1 ॥
सुरासुराः किंपु-रुषोरगेन्द्रा गन्धर्वाद्याधरपन्नगाश्च
पीड्य सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः ॥ 2 ॥
नराः नरेन्द्राः पुष्पत्तनानि पीड्यन्ति
सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः ॥ 3 ॥
तिलेयवैर्माषुगृडान्दनैर्लोहेन नीलाम्बर-दानतो
वा प्रीणाति मन्त्रैर्निजिवासरे च तस्मै नमः ॥ 4 ॥
प्रयाग कूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम्‌ ।
यो योगिनां ध्यागतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै ॥ 5 ॥
अन्यप्रदेशात्स्वः गृहंप्रविष्टदीयवारेसनरः सुखी ॥ 6 ॥
स्यात्‌ गहाद्गतो यो न पुनः प्रयतितस्मैनभ खष्टा
स्वयं भूवत्रयस्य त्रोता हशो दुःखोत्तर हस्ते पिनाकी एक स्त्रिधऋज्ञ जुःसामभूतिंतस्मै ॥ 7 ॥
शन्यष्टक यः प्रठितः प्रभाते, नित्यं सुपुत्रः पशुवान्यश्च ॥ 8 ॥
पठेतु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोतिनिर्वाण पदं तदन्ते ॥ 9 ॥
कोणस्थः पिंगलो बभ्रूः कृष्णोरौद्रान्तको यमः ॥ 10 ॥
सौरिः शनैश्चरोमन्दः पिपलादेन संस्तुतः ॥ 11 ॥
एतानि दशनामानि प्रतारुत्थाय यः पठेत्‌ ॥ 12 ॥

शनैश्चकृता पीड़ा न न कदाचिद् भविष्यति ॥ 13 ॥

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