अध्यात्म

इस स्थान पर दो पल के लिए रुकी थी मां वैष्णो देवी, यहां जाने से वैष्णो यात्रा हो जाती है सफल

हर साल लाखों की संख्या में लोग माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए वैष्णो देवी मंदिर आया करते हैं। कोल कंडोली, देवा माई, भूमिका मंदिर, दर्शनी ड्योढ़ी, बाण गंगा, चरण पादुका, अर्द्धकुंवारी, हाथी मत्था, भैरों मंदिर जैसे पड़ावों को वैष्णो देवी की यात्रा का मुख्य हिस्सा माना जाता है और इन पड़ाव को पूरा करने के बाद ही मां के दर्शन करना सफल माना जाता है।

माता वैष्णो देवी की गुफा पहुंचने के लिए चढ़ाई करनी पडती है और इस चढ़ाई के दौरान एक ऐसा स्थल आता है जहां पर मां दो पल के लिए रुकी थी। इस स्थल पर मां के चरणों के निशान मौजूद हैं। अपनी यात्रा शुरू करते समय भक्त इस स्थल पर जरूर जाते हैं और यहां पर बनें मां के चरणों के निशान के दर्शन करते हैं। माता वैष्णो देवी की यात्रा के इस पहले हिस्से को चरण पादुका के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस जगह पर कन्या रूपी मां दो पल के लिए रूकी थीं और इस चीज का अंदाजा लगाया था कि भैरों उनसे कितनी दूर हैं। इस स्थान पर रुकने के कारण मां के चरणों के निशान यहां बन गए थे और यात्रा के दौरान भक्त इन चरणों के निशान के दर्शन भी करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो भी भक्त माता वैष्णो के चरणों को छूकर अपनी यात्रा को प्रारंभ करता है। उनकी ये यात्रा अच्छे से हो जाती है और सफल रहती है।

मां वैष्णो देवी से जुड़ी कथा

माता वैष्णो देवी से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार एक श्रीधर नामक व्यक्ति माता वैष्णो का परम भक्त था और मां की भक्ती में ही लगा रहता था। एक दिन श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर मां उसके सपने में आई और मां ने उसे कहा कि वो एक भंडारा करे और इस भंडारे में गांव के सभी लोगों को बुलाए। लेकिन श्रीधर के पास इतना धन नहीं था कि वो अपने गांव में भंडारे का आयोजन कर सके। लेकिन फिर भी किसी तरह से श्रीधर ने भंडारे का आयोजन कर दिया और गांव वालों को भंडारे में बुलाया। इस भंडारे में भैरवनाथ और उनके शिष्य भी पधारे। भंडारे में खीर-पूरी को देख भैरवनाथ को गुस्सा आ गया और उसने मांस की मांग की। श्रीधर के बहुत समझाने के बावजूद भैरवनाथ नहीं माना। इसी बीच मां दुर्गा ने कन्या रूप में वहां दर्शन दिए। लेकिन भैरवो को कन्या पर गुस्सा आ गया और कन्या को पकड़ने के लिए आगे बढ़ा। लेकिन वह कन्या वहां से त्रिकूट पर्वत की ओर भाग गई। भागते-भागते कन्या एक स्थान पर जा पहुंचीं और वहां पर रुककर भैरवनाथ कितनी दूर है ये देखने लगी। आज इसी स्थान को चरण पादुका के नाम से जाना जाता है।

भैरव से बचने के लिए कन्या एक गुफा में जा पहुंची। इसी बीच कन्या ने एक वीर लांगुर को बुलाया और उसे भैरव को 9 महीने व्यस्त रखने को कहा। इन नौ महीने कन्या मे गुफा में तपस्या की। इस गुफा को अर्धकुंवारी के नाम से जाना जाता है और जो लोग वैष्णों की यात्रा पर आते हैं वो इसी पवित्र गुफा के अंदर से जरूर गुजरते हैं। इस गुफा में मां तीन पंडियों के रूप में स्थापित हैं और इन पंडियों के दर्शन किए जाते हैं।

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