अध्यात्म

भारत का एक ऐसा मंदिर जहाँ औरत बनकर मर्द करते हैं पूजा, जानिए आखिर क्यों होता है ऐसा..

भारत में धर्म को एक ख़ास स्थान दिया गया है। यहाँ धर्म की रक्षा के लिए सदियों से लड़ाइयाँ लड़ी गयी है। हर प्रान्त के मंदिर की अपनी एक अलग ख़ासियत है। हर मंदिर में पूजा करने की विधि भी अलग है। आपने अक्सर कुछ ऐसे मंदिरों के बारे में सुना होगा जहाँ महिलाओं का अन्दर जाना मना है। महिलाएँ उस मंदिर में बाहर से ही पूजा-पाठ कर सकती है। इसके लिए कुछ जगहों पर जमकर विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं।

सजना-संवरना है महिलाओं का शौक:

आपने अक्सर महिलाओं को सजते संवरते देखा होगा, क्योंकि सजना संवरना उनका शौक होता है। अगर एक महिला श्रृंगार ना करे तो उसकी सुन्दरता में कुछ कमी सी रह जाती है। अकसर महिलायें जब देवी माँ की पूजा के लिए जाती हैं, तो वह सोलह श्रृंगार करके ही जाती हैं। हमेशा आपने महिलाओं को मनचाहे पति की प्राप्ति के लिए सज-संवरकर पूजा करते हुए देखा। लेकिन आज मैं आपको भारत में एक ऐसे अद्भुत मंदिर के बारे में बताने जा रहा हूँ, जहाँ मर्द, औरत की तरह सोलह श्रृंगार करके पूजा करने जाता है।

सदियों से चल रही है यह परम्परा:

दरअसल हम जिस मंदिर के बारे में बात कर रहे हैं वह केरल के कोट्टनकुलंगरी देवी का मंदिर है। यहाँ पर देवी माँ के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। यहाँ सदियों से परम्परा है कि मर्द सोलह श्रृंगार करके मंदिर में माथा टेकने जाते हैं। यहाँ हर साल चाम्याविलक्कू नाम का त्यौहार मनाया जाता है, इस दिन लड़के महिलाओं की तरह साड़ी पहनकर, सोलह श्रृंगार करके मंदिर जाते हैं।

पूरी हो जाती है हर मनोकामना:

ऐसा माना जाता है कि बहुत साल पहले कुछ चरवाहों ने महिलाओं के कपड़े पहनकर पत्थर पर फूल चढ़ाया था। उसके बाद से पत्थर में से दिव्य शक्ति निकलने लगी और पत्थर वाली जगह पर मंदिर बना दिया गया। इस दिन के बारे में कहा जाता है कि माता की लीला इसी दिन दिखी थी, इसलिए त्यौहार इसी दिन मनाया जाता है। आपको बता दें केरल के इस मंदिर के गर्भगृह के ऊपर कोई छत या कलश नहीं बना हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि अगर इस दिन कोई भी पुरुष सोलह श्रृंगार करके माता की पूजा करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी हो जाती हैं।

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