विशेष

कभी थी नेशनल लेवल फुटबॉल प्लेयर, आज इस कारण बकरी चरा गुजारा कर रही

एक समय था जब ओडिशा सरकार के अजेंडा में स्पोर्ट्स फिगर्स टॉप की प्राथमिकता हुआ करते थे. लेकिन अब हाल ये हैं कि नेशनल लेवल पर फूटबॉल खेल ओडिशा में ख्याति बटोर कर लाने वाली एक महिला खिलाड़ी आज मजदूरी करने और बकरी चराने पर मजबूर हैं. हम यहाँ जिस महिला खिलाड़ी की बात कर रहे हैं उनका नाम तनूजा बागे हैं. तनूजा ओडिशा के झारसुगुडा जिले के देबदिही गाँव से ताल्लुक रखती हैं. तनूजा बीते समय में ओडिशा को नेशनल लेवल तक रिप्रेजेन्ट कर चुकी हैं. हालाँकि वर्तमान में गरीबी की वजह से ये नेशनल लेवल गोलकीपर अपना खेल छोड़ मजदूरी करने को मजबूर हैं.

वर्तमान में तनूजा एक छोटी सी झोपड़ी में रहती हैं जिसके अंदर उनके द्वारा जीते गए अवार्ड्स और सर्टिफिकेट्स भरे पड़े हैं. फिल्ड में अपना अच्छा प्रदर्शन करने के बाद उसे आशा थी कि  सरकार आगे खेल में आगे बढ़ने और एक ठीक ठाक जीवन जीने में उसकी सहयता करेगी. हालाँकि ऐसा कभी हुआ ही नही. तनूजा का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था. उसने साल 2003 से 14 वर्ष कि उम्र में ही फुटबॉल खेलना शुरू कर दिया था.

इसके बाद उन्होंने ब्रजनगर में कुछ सीनियर फुटबॉल पलयेर से ट्रेनिंग ली थी. फिर कुछ साल ओडिशा के लिए खेलने के पश्चत तनूजा ने इंडियन टीम में ही बतौर गोलकीपर अपनी जगह बना ली थी. तनूजा ने साल 2011 तक इंडियन टीम के लिए चार मैच बतौर गोलकीपर खेले थे. इसके साथ ही वो फुटबॉल के अवाला स्टेट और नेशनल लेवल की रग्बी प्लेयर भी रह चुकी हैं.

तनूजा नम आँखों से कहती हैं कि “मेरे अवार्ड्स और सर्टिफिकेट्स अब किसी काम के नहीं हैं क्योंकि इससे मेरा घर नहीं चल रहा हैं. गरीबी की वजह से में खेल के बारे में सोच भी नहीं सकती हूँ.” तनूजा के पास अपना खुद का घर भी नहीं हैं. वे वर्तमान में अपने पति के साथ सरकारी जमीन पर बनी एक झोपड़ी में रहती हैं. तनूजा के पति भी डेली मजदूरी करते हैं. इन दोनों की एक बेटी भी हैं. डेली मजदूरी से जो पैसा मिलता हैं उसी से घर खर्च चलता हैं. उनके पास स्टेट गवर्नमेंट का दिया एक राशन कार्ड भी हैं जिसके माध्यम से वो जैसे तैसे अपना गुजरा चला रही हैं.

तनूजा के पास इसके पहले एक प्राइवेट जॉब भी थी लेकिन वो उपयुक्त नहीं थी. वे बताती हैं कि “पूर्व कलेक्टर बीबी पटनायक के कार्यकाल में उन्होंने मुझे स्टूडेंट्स को फूटबॉल ट्रेनिंग देने की एक प्राइवेट जॉब दी थी. तब मुझे 8,000 सैलरी का वादा किया गया था लेकिन मिलते सिर्फ 3,000 रुपए ही थे. इसके अलावा उस जॉब के लिए मुझे रोजाना साइकिल से 15 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. इन सभी बातों के चलते मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा और मैंने नौकरी छोड़ दी.

गाँव की महिलाओं के लिए तनूजा एक रोल मॉडल थी. उन्हें तनूजा की उपलब्धियों पर गर्व था. उनका कहना हैं कि राज्य सरकार कम से कम तनूजा को दोबारा खेलने के लिए नौकरी और अवसर तो प्रदान कर ही सकती हैं. कलेक्टर ज्योति रंजन प्रधान का कहना हैं कि मैं जल्द ही उनसे मिलूँगा और उनकी आर्थिक स्थिति का जायजा लेकर मदद करूँगा. उन्होंने बताया कि हम जिले के स्पोर्ट्स ऑफिसर को सहायता करने का कहेंगे.

Back to top button