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ZOMATO ‘खाने का कोई धर्म नहीं होता’ लेकिन हम तुम्हे बताते हैं की तुम्हारा ज्ञान कितना खोखला है

धर्म को लेकर लोग आपस में सदियों से लड़ते आ रहे हैं। हिंदू अपने धर्म को बचाने में लगे हैं तो मुस्लिम अपने इस्लाम के खिलाफ कुछ नहीं सुन सकते। आज का हर इंसान अपने धर्म को इंसानियत से ऊपर रखता है जबकि यही सबसे ज्यादा काम आती है। जब हम किसी परेशानी में फंसे होते हैं तो हमें लगता है कि कोई हमें इससे बाहर निकाल ले फिर वो परेशानी किसी भी धर्म का हो। हमारे जन्म के समय और जब हम बड़े हो रहे होते हैं तब माता-पिता बताते हैं तभी हम उस धर्म को अपनाते हैं वरना बचपन में हर कोई एक समान होता था। मगर बिजनेस किसी धर्म को नहीं मानता और ZOMATO को याद नहीं आया ‘खाने का कोई धर्म नहीं होता’? ऐसा क्या ज्ञान देना चाहता है जोमैटो चलिए बताते हैं।

ZOMATO को याद नहीं आया ‘खाने का कोई धर्म नहीं होता’?

ट्विटर पर एक और सांस्कृतिक लड़ाई शुरु हो गई है। फूड डिलीवरी सर्विस ZOMATO ने खाना लोगों तक पहुंचाने के साथ ही ज्ञान देना भी शुरु कर दिया है। इन्होंने अपने ट्विटर पर खाने के साथ ही कुछ ऐसी बातें लिखनी शुरु की हैं जो आपको खाने के साथ तो हजम नहीं होनी है। 31 जुलाई को जोमैटो ने अपने ट्वीट पर लिखा, खाने का कोई धर्म नहीं होता क्योंकि खाना ही धर्म होता है।

ऐसा इसलिए लिखा क्योंकि जोमैटो के एक ग्राहक ने खाने की डिलीवरी लेने से मना कर दिया क्योंकि खाना पहुंचाने वाला डिलीवरी ब्वॉय एक मुस्लिम था। सावन के महीने में वो किसी गैर-हिंदू के लोगों के हाथ से खाना नहीं ले सकता था। इस पर कैंसलेशन फीस काटना जोमैटो का अधिकार बन गया और उन्होंने ऐसा ही किया। मगर इसके साथ ही उन्होने ये ट्वीट कर दिया। इनता नैतिक ज्ञान देना जोमैटो के लिए कम नहीं था तो उसके संस्थापक दीपिंदर गोयल ने भी नैतिक शिक्षा देने की ठान ली।

जोमैटो के फाउंडर दीपेंद्र गोयल ने ट्विटर पर लिखा, ‘हमें भारत के आइडिया ऑफ इंडिया पर गर्व है और मेरे ग्राहकों की साझीदारी की विभिन्नता का भी हमें है। इसके साथ ही कथित मूल्यों के आड़े आने वाले ग्राहक के बिजनेस छोड़े का भी कोई गम नहीं है।’

सारे मूल्य धरे के धरे रह गए

जोमैटो का ये ज्ञान कितना खोखला था इसके बारे में जब एक मुस्लिम ने गैर-हलाल खाने की शिकायत की तो जोमैटो उनके चरणों में गिर गया। उस समय उसके सारे ज्ञान हवा में उड़ गए, जबकि हलाल गैर-हलाल एक मुद्दा बन गया और उतना ही मजहब और आस्था का विषय भी, जितना खाना पहुंचाने वाले का हिंदू होना या नहीं होना है। जिन्हें लग रहा है कि एकतरफा राजनीति है उन्हें ये याद दिलाना बहुत जरूरी है कि संघियों का आर्थिक बहिष्कार करने की अपीलें भी देश में हुई हैं और आझ उस समय राजनीतिकरण नहीं करनी चाहिए। बाद में जोमैटो ने स्वीकार किया कि वे अपने सभी ग्राहकों की हर बात का खास ख्याल रखेंगे।

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