अध्यात्म

योग साधना की महाशक्ति – हड्डियां जमा देने वाली बर्फ पर इन साधुओं की जिंदगी है जिंदाबाद!

नई दिल्ली – हिमाचल की हड्डियां जमा देने वाली बर्फ पर जहां जाने की सोचकर हमारी रुह तक कांप जाये वहीं एक जोगी ऐसा भी है जो वर्षों से ऐसी सर्द मौसम में वहां तपस्या कर रहा है। 11,965 फीट की ऊंचाई पर 12 से 15 फीट की सफेद चादर पर हड्डियां जमा देने वाली देने वाली इस सर्दी में जहां कम कल्पना भी नहीं कर सकते वहीं आस्था और योग साधना की अद्भुत क्षमता के दम पर चूड़धार में यह साधु अपनी साधना में लगे हुए हैं। उनके खाने का इंतजाम भी वहीं किया जा रहा है। ये साधु अपने लिए पीने के इंतजाम बर्फ को पिघलाकर करते हैं। lives in ice on chudidhar choti.

बर्फ से ढक़ी चूड़धार चोटी का नजारा है अद्भुत –

lives in ice on chudidhar choti

इस सर्द मौसम में बर्फ से ढ़की चूड़धार चोटी पर योग साधना करने वाले इस जोगी का नाम ब्रह्मचारी स्वामी कमलानंद गिरि है। स्वामी कमलानंद गिरि के साथ मंदिर के पुजारी पंडित कृपाराम शर्मा व उनके शिष्य काकूराम भी स्वामी की सेवा व भगवान शिरगुल महाराज की भक्ति में लीन हैं। चूड़ेव्श्रार सेवा समिति के प्रबंधक बाबूराम के मुताबिक चूड़धार में इस समय 12 फीट तक बर्फबारी हुई है लेकिन चोटी पर मौजूद तीनों साधु सकुशल हैं। चूड़धार में प्राचीन शिरगुल मंदिर का हाल ही में जीर्णोद्घार किया गया है। जिससे पहले की अपेक्षा अब प्राचीन मंदिर 25 फीट अधिक ऊंचाई पर हो गया है। ऊंचाई बढ़ने के कारण मंदिर का आखिरी छोर बर्फ में नहीं डूबा है और मंदिर में पूजा अर्चना का कार्य जारी है।

 

आस्था की शक्ति ने संजो रखा है जीवन –

lives in ice on chudidhar choti

ऊंचाई 11,965 फीट। 12 से 15 फीट बर्फ की सफेद चादर और इतनी ऊंचाई पर जीवन अपनी आप में एक मिसाल है। यह आस्था का ही नतीजा है कि असम्भव परिस्थितीयों में भी वहां जीवन संभव हो सका है। हाड कंपकंपा देने वाली ऐसी ठंड में रुकने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता लेकिन आस्था और योग साधना से चूड़धार में तीन जिंदगियां जीवन यापन कर रही हैं। गौरतलब है कि लगभग पांच साल पहले जब ब्रह्मचारी स्वामी कमलानंद जी ने अकेले ही चोटी पर रहने का फैसला किया था तब चोटी के तराई वाले क्षेत्रों में स्वामी जी की कुशलता को लेकर हड़कंप मच गया था। स्वामी जी की कुशलता जानने के लिए जान जोखिम में डाल कर कुपवी क्षेत्र के लोगों का एक दल चोटी पर भी पहुंच गया था। तभी से स्वामी जी को चोटी पर अकेले नहीं रहने दिया जाता।

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