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ये है भारत का अनोखा गांव जहां पर बोली जाती है केवल संस्कृत, नेता भी संस्कृत में ही देते हैं भाषण

हमारे देश की सबसे पुरानी भाषा संस्कृत भाषा है। महाभारत, रामायण और हमारे वेद इसी भाषा में ही लिखे गए हैं। इस भाषा का प्रयोग भारत में सदियों से चला आ रहा है। लेकिन अफसोस की बात है कि धीरे धीरे ये भाषा खत्म होती जा रही है और अब इस भाषा का प्रयोग लोगों द्वारा नहीं किया जा रहा है। आज के समय में काफी कम लोग बचे हैं जिन्हें ये भाषा अच्छे से आती है। इस भाषा को खत्म होता देख इसे बचाए रखने के लिए काफी कोशिशें भी की जा रही हैं और इन्हीं कोशिशों के तहत भारत के एक गांव ने इस भाषा को अपनी स्थानीय बोली बना रखा है। अगर आप कर्नाटक के मत्तूर गांव जाते हैं तो आपको यहां के लोगों से बातचीत करने के लिए संस्कृत भाषा आना जरूरी है। क्योंकि इस गांव के लोग सिर्फ इसी भाषा में बातचीत किया करते हैं और इस गांव में आने वाले लोगों को ये भाषा आनी चाहिए।

कई सालों से यहां बोली जा रही है संस्कृत भाषा

बैंगलुरू से सगभग 300 किलोमीटर दूरी पर बसे इस गांव में 36 साल पहले इस भाषा को यहां की स्थानीय भाषा बनाया गया था। उस दौरान इस गांव के लोगों को भी ये भाषा अच्छे से नहीं आती थी। मगर फिर भी इस गांव के लोग रोज दो घंटे इसी भाषा में बात करते थे। धीरे धीरे ये भाषा इस गांव के हर व्यक्ति को आने लग गई और आज इस गांव का हर व्यक्ति केवल इसी भाषा का प्रयोग बोलचाल में किया करता है। कहा जाता है कि साल 1981-82 तक इस गांव में भी इस राज्य की भाषा यानी कन्नड़ को बोला जाता था। ऐसा होने से इस गांव से संस्कृत भाषा खत्म होने लग गई थी। दरअसल इस गांव के लोगों के अनुसार कुछ लोग संस्कृत को ब्राह्मणों से जोड़कर देखते थे और इस भाषा की आलोचना किया करते थे। इस भाषा के खिलाफ होने की कारण ही इस गांव में संस्कृत की जगह कन्नड़ भाषा को बोलने का आदेश दिया गया था। लेकिन गांव के लोगों ने संस्कृत भाषा की रक्षा करने के लिए एक अभियान शुरू किया और संस्कृत भाषा को बोलचाल में जारी रखा।

इस तरह से लोगों ने सीखी संस्कृत भाषा

संस्कृत भाषा का ज्ञान लोगों को अधिक नहीं था और लोगों को ये भाषा अच्छे से बोलने नहीं आती थी। वहीं इस भाषा को खत्म होता देख और इस भाषा के खिलाफ बढ़ते विरोध के चलते पेजावर मठ के स्वामी ने मत्तूर गांव को संस्कृत भाषा का गांव बनाने का आवेदन किया था। जिसके बाद इस गांव के लोगों ने इस भाषा में ही बात करना शुरू कर दिया और आज तक इस गांव के लोग इसी भाषा में बात करते हैं। जिसके साथ ही ये हमारे देश का इकलौता ऐसा गांव बन गया जहां पर संस्कृत भाषा बोली जाती है। इस गांव में रहने वाले मुस्लिम भी इसी भाषा में बात किया करते हैं। इस गांव में करीब 3500 लोगों की जनसंख्या है।

स्कूल में चुनते हैं संस्कृत भाषा

इस राज्य में जब बच्चे स्कूल जाते हैं तो उन्हें तीन भाषाओं को चुनने का विकल्प दिया जाता है। वहीं इस गांव के बच्चों द्वारा स्कूल में संस्कृत को पहली भाषा के तौर पर चुना जाता हैं, दूसरी भाषा के तौर पर अंग्रेजी और तीसरी भाषा के तौर पर कन्नड़, तमिल या किसी अन्य स्थानीय भाषा को बच्चे चुनते  है। यानी इस गांव के लोग अपने बच्चों को संस्कृत भाषा सीखाने को प्राथमिकता देते हैं। अगर आपको लग रहा है कि इस गांव के लोग पिछड़े हुए हैं, ज्यादा पढ़े लिखे नहीं होंगे या फिर कोई अच्छी नौकरी नहीं करते होंगे तो आप एकदम गलत सोच रहे हैं। क्योंकि इस गांव के लगभग हर घर में सॉफ्टवेयर इंजीनियर या मेडिकल की पढ़ाई किए हुए लोग मौजूद हैं, जो कि अच्छे पद पर कार्य कर रहे हैं।

प्रचार के दौरान करना पड़ता है संस्कृत भाषा का प्रयोग

इस गांव में जो भी नेता चुनाव प्रचार करने के लिए आता है उसे संस्कृत भाषा का ही प्रयोग करना पड़ता है। एक बार इस गांव मेंं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आकर एक भाषण दिया था और इस भाषण को उन्होंने संस्कृत भाषा में ही दिया था। ये भाषण देने के बाद सुषमा स्वराज ने एक ट्वीट भी किया था और अपनी खुशी जाहिर की थी।

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