दिलचस्प

कुछ भी बोलने से पहले इस बात का ध्यान रखें, फायदे में रहेंगे

रामलिंगम की एक दिन अपने पड़ोसी तेनाली किशना से जमकर लड़ाई हुई। बाद में जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उसे खुद पर शर्म आई। वह इतना शर्मसार हुआ कि अपने गुरु विजयेंद्र सरस्वती के पास पहुंचा।

गुरु ने आने का कारण पूछा, तो रामलिंगम ने सब कुछ सही-सही बता दिया। यहां तक कि उसने वे शब्द भी दोहरा दिए, जो उसने तेनाली से कहे थे और फिर रोने लगा और पछताते हुए कहा, मैं अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहता हूं।

गुरु विजयेंद्र सरस्वती ने कहा कि ठीक है, प्रायश्चित करो, लेकिन प्रायश्चित से पहले पंखों से भरा एक थैला लाओ। रामलिंगम को पंख इकट्ठा करने में समय लगा। कोई दो बोरे पंख इकट्ठा हो गए। उन्हें लेकर वह गुरु के पास पहुंचा। गुरु ने उन पंखों को देखा और कहा, इन पंखों को शहर के बीचों बीच उड़ा दो। रामलिंगम ने ठीक वैसा ही किया, जैसा गुरु ने उससे कहा था। पंख उड़ाकर वह फिर गुरु के पास लौट आया। लौटने पर गुरु ने उससे कहा, अब जाओ और जितने भी पंख उड़े हैं, उन्हें बटोर कर थैले में भर लाओ।

रामलिंगम जब वैसा करने लगा, तो उसे मालूम हुआ कि यह काम मुश्किल नहीं, बल्कि असंभव है। खैर, खाली थैला ले वह वापस गुरु के पास आ गया। यह देखकर गुरु ने उससे कहा, ऐसा ही मुंह से निकले शब्दों के साथ भी होता है। इसलिए हमेशा अपने शब्दों को तौल कर बोलें। महान दार्शनिक कन्फ्यूसियस ने कहा है, शब्दों को नाप-तौलकर बोलो, जिससे तुम्हारी सज्जनता टपके।

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