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खुदीराम बोस थे देश के सबसे पहले शहीद, पढ़िए दिलचस्प बातें इनके बारे में

आप सभी जानते हैं 15 अगस्त 1947 को भारत को पूरी तरह से आजादी मिल गई थी और इस आजादी को दिलवाने के पीछे बहुत सारे लोगों का हाथ था। इसमें कई लोगों ने अपनी जाने भी गवाही और क्रांतिकारी एवं शहीद कहलाए खुदीराम बोस का नाम आपने सुना ही होगा। क्या आप जानते हैं देश को आजादी दिलाने की क्रांति में खुदीराम बोस शहीद हो गए थे और वह सबसे पहले शहीद होने वाले शख्स थे। आज 15 अगस्त के अवसर पर हम आपको खुदीराम बोस के बारे में कई सारी दिलचस्प बातें बताने वाले हैं जिसके बारे में आपने कहीं पढ़ा हो भी सकता है और नहीं भी जिन लोगों ने नहीं पढ़ा वह इनके बारे में अवश्य जाने इन्होंने अपने बचपन से ही क्रांतिकारी बनने का सपना बोल लिया था और देश को आजादी दिलाने में बहुत बड़ा योगदान दिया तो चलिए जानते हैं इनके बारे में।

आज कल आम तौर पर जब बच्चे छोटे होते हैं तो पढ़ना लिखना और दोस्तों के साथ घूमना फिरना यही उनका सपना होता है कि वह बड़ा होकर अच्छा पढ़ लिखकर डॉक्टर या इंजीनियर बनेंगे, किंतु खुदीराम मैं अपने बचपन में ही एक क्रांतिकारी बनने की सोच ली थी और अपने दिल में देश के प्रति क्रांति की मशाल जला दी थी।

छोटी सी उम्र में ही इन्होंने देश के लिए एवम उसको आजादी दिलाने के लिए हसीन ख्वाब देख लिए थे। देश में आजादी की क्रांतिकारी खुदीराम बोस जी की शहादत के बाद ही शुरू हुई थी हाथ में गीता लेते हुए फांसी के फंदे तक चल कर गए थे और चेहरे पर एक मुस्कुराहट के साथ।

खुदीराम बॉस के क्रांतिकारी तेवर और देश को आजादी दिलाने की जीत पर पूरा ब्रिटिश शासक घबरा गया था और उन्होंने महज 18 साल की उम्र में ही खुदीराम को फांसी के तख्ते पर लटका दिया था। इनकी शहादत के बाद पूरे देश में स्वतंत्रता का संग्राम छिड़ गया था 11 अगस्त 1908 को ब्रिटिश सरकार ने इनको फांसी की सजा सुनाई थी।

अनाथ थे खुदीराम

खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को हुआ था बंगाल के मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में। जब यह बहुत छोटे थे तभी इनके माता पिता की मृत्यु हो गई थी बड़ी बहन के द्वारा इनका लालन पोषण हुआ। 1950 में बंगाल का विभाजन हुआ था उस समय इनके अंदर क्रांति की आग जल उठी थी और इन्होंने अपना क्रांतिकारी जीवन आरंभ कर दिया था, इन्होंने राजनीति से जुड़े हुए कई अध्ययन कर रखे थे और बड़े-बड़े जुलूसों में अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाते थे 9 वीं कक्षा तक इन्होंने पढ़ाई की और उसके बाद अंग्रेजों से पीछा छुड़ाने के लिए अपने सर पर कफन बांध लिया था।

वंदे मातरम के पर्चे भी बांटे

1996 सोनार नामक एक इस्तेहार बांटते हुए पकड़े गए जिसमें उन्होंने वंदे मातरम के पर्चे भी बांटे थे किंतु यह पुलिस के शिकंजे से निकलकर भागने में सफल रहे थे कोलकाता के किंग्‍सफर्ड चीफ प्रेजिडेंसी मैजिस्‍ट्रेट को क्रांतिकारियों के लिए बहुत ही जल्लाद माना जाता था उनकी हत्या करने के लिए खुदीराम को चुना गया था और उन्होंने उनकी बग्गी में बम फेंक कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया था उसके बाद खुदीराम बोस हिरासत में आए और 8 जून 19 और 8 को अदालत ने इन्हें मजिस्ट्रेट की हत्या की साजिश में मौत की सजा सुना दी 11 अगस्त 1968 को 18 साल की उम्र में इन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया।

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