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सनसनीखेज खुलासा: अपने किये हुए वादे से मुकर जाना गाँधी परिवार की परम्परा है!

यह बात किसी से छुपी नहीं है कि जवाहर लाल नेहरु और उनका परिवार अंग्रेजों के इशारों पर काम करते थे। आजादी के बाद भी कोई बड़ा निर्णय वह अंग्रेजों से बिना पूछे नहीं लेते थे। अंग्रेजों की कैसी नियत थी यह सभी जानते हैं। उनमे धोखा, छल कूट- कूट कर भर हुआ था। अपने वादों से वो ऐसे मुकरते थे जैसे उन्होंने कभी कोई वादा किया ही ना हो। अंग्रेजों की यह आदत नेहरु के परिवार को भी लग गयी थी। इसी धोखे की आदत के कारण इंदिरा गाँधी को एक साधू ने श्राप दिया था। आइये जानते हैं क्या था पूरा मामला?

करपात्री जी महाराज के आशीर्वाद से इंदिरा जीती चुनाव:

वादे से मुकर जाना गाँधी परिवार की परम्परा है

यह बात 1966 की है, उस समय करपात्री नाम के महान संत हुआ करते थे। वे काफी सिद्ध पुरुष थे, इसलिए सभी लोग उनका आशीर्वाद लेने के लिए दूर- दूर से आते थे। इंदिरा गाँधी को उस समय चुनाव जितना मुश्किल लग रहा था तो वह करपात्री जी महाराज के पास गयीं। करपात्री जी महाराज ने उन्हें एक शर्त पर चुनाव जीतने का वरदान दिया कि चुनाव जीतने के बाद आप सारे गायों की हत्या को रुकवा देंगी। उन्होंने उस समय शर्त स्वीकार की और महाराज के आशीर्वाद से चुनाव जीत भी गयीं।

तब हर रोज 15000 गायें काटी जाती थी:

चुनाव जीतने के बाद करपात्री जी महाराज ने इंदिरा को अपना वादा याद करने को कहा और कहा कि इसे जल्दी से पूरा करो। इंदिरा अपने वादे से मुकर गयीं और गायों की हत्या होना नहीं रुकवा सकीं। पहले की ही तरह हर रोज 15000 गायें काटी ही जा रही थी। यह बात करपात्री जी महारज को नागवार गुजरी और वे क्रोधित होकर वहाँ से चले आये। करपात्री जी महाराज कुछ दिनों बाद अपने लाखों भक्तों के साथ संसद पहुँचे और वह प्रदर्शन करना शुरू कर दिया।

इंदिरा गाँधी ने निहत्थे भक्तों पर गोलियां चलवाई:

करपात्री जी महाराज ने इंदिरा के सामने कहा कि आप अपना वादा पूरा करते हुए देश में गाय काटने की जगहों को बंद करने का बिल पास कीजिये। इंदिरा ने ऐसा कुछ भी नहीं किया बल्कि उल्टा उनके निहत्थे भक्तों पर गोलियां चलवा दी। इस गोलीबारी से सैकड़ों भक्त मारे गए। अब करपात्री जी महाराज का धैर्य पूरी तरह टूट गया और वे अति क्रोधित होते हुए बोले जैसे तुमने मेरे भक्तों पर गोलियां चलवाई हैं वैसे ही गोलियों से तुम्हारी भी मृत्यु होगी। इंदिरा गाँधी किस तरह मारी गयीं ये सभी लोगों को पता है, उनके अपने ही एक गार्ड ने उनको गोलियों से छलनी कर दिया। जिस दिन करपात्री महाराज के भक्तों पर गोलियां चली थी उस दिन गोप अष्टमी थी और जिस दिन इंदिरा गाँधी मारी गयीं उस दिन भी गोप अष्टमी थी। करपात्री जी महाराज से छल का उन्हें अपनी जान गँवा कर हरजाना भरना पड़ा।

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