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‘हिंदुत्व” पर सुप्रीम कोर्ट का एतिहासिक फैसला, कट्टर पंथियों को ज़ोर का झटका

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने आज साफ कर दिया कि कोर्ट के 1955 के उस जजमेंट पर पुनर्विचार नहीं करेगी जिसमें कहा गया था ‘हिंदुत्व धर्म नहीं बल्कि जीवनशैली है’। हिंदुत्व शब्द की दोबारा व्याख्या से सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की बेंच ने इनकार कर दिया है। (judgement on hindutva)

कोर्ट ने कहा, “हम जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 (3) पर सुनवाई कर रहे हैं। इसमें चुनावी फायदे के लिए धर्म, जाति, समुदाय और भाषा के इस्तेमाल को गलत माना गया है। किसी पुराने फैसले में तय किसी शब्द की परिभाषा हमारा विषय नहीं है।”

20 साल पुराने हिंदुत्व जजमेंट को पलटने उठी थी मांग (judgement on hindutva)-

सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और कई अन्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर 20 साल पुराने हिंदुत्व जजमेंट को पलटने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि पिछले ढाई साल से देश में इन आदेशों की आड़ में इस तरह का माहौल बनाया जा रहा है, जिससे अल्पसंख्यक, स्वतंत्र विचारक और अन्य लोग खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को ऐसे भाषण देने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।  

दरअसल, भारत में चुनाव के दौरान धर्म, जाति समुदाय इत्यादि के आधार पर वोट मांगने या फिर धर्म गुरूओं द्वारा चुनाव में किसी को समर्थन देकर धर्म के नाम पर वोट डालने संबंधी तौर तरीके कितने सही और कितने गलत हैं ? इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है।

क्या था 1995 में कोर्ट का फैसला (judgement on hindutva) –  

1995 में जस्टिस जे. एस. वर्मा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने कहा था कि ‘हिंदुत्व’ को किसी धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता। ये शब्द धर्म की बजाय भारत में बसने वाले लोगों की जीवनशैली से जुड़ा है। बेंच की इस परिभाषा के बाद महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी समेत शिवसेना-बीजेपी के कई सदस्यों की विधानसभा रद्द होने से बच गई थी।

कोर्ट ने कहा था, ‘हिंदुत्व शब्द भारतीय लोगों के जीवन पद्धति की ओर इशारा करता है। इसे सिर्फ उन लोगों तक सीमित नहीं किया जा सकता, जो अपनी आस्था की वजह से हिंदू धर्म को मानते हैं। इस फैसले के तहत, कोर्ट ने जनप्रतिनिधि कानून के सेक्शन 123 के तहत हिंदुत्व के धर्म के तौर पर इस्तेमाल को ‘भ्रष्ट क्रियाकलाप’ मानने से इनकार कर दिया था।  

 

1996 के फैसले से जुड़ा है मामला  –

साल 1992 के महाराष्ट्र चुनाव में मनोहर जोशी ने कहा था कि वे महाराष्ट्र को पहला हिंदू राज्य बनाएंगे। मामला कोर्ट पहुंचा। 1995 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने चुनाव रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी गई। कोर्ट ने 1996 में फैसला दिया कि हिंदुत्व ‘वे ऑफ लाइफ’ यानी जीवन शैली है। इसे हिंदू धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता। इसलिए हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगना रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट के तहत करप्ट प्रैक्टिस नहीं है।  

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