राजनीति

अब भारत में चालू हुई पहली ‘पानी’ से चलने वाली बस, ऐसे बनता है पानी से ईंधन!

पानी से चलने वाली बस: भारत में बढ़ रही महंगाई का असर आम आदमी पर सबसे अधिक देखने को मिलता है. ऐसे में महंगे पेट्रोल और डीज़ल ने हर जगह लूट मचा रखी थी. इसी लूट से बचने के लिए भारतीय सरकार ने एक नई पहल की. दरअसल, अब भारत में बसें पानी से चलाई जाएँगी. इसके इलावा हाल ही में फरीदाबाद में हाईड्रोजन से चलने वाली पहली बस लांच हो गई है. लगातार भारी भरकम कोशिशों के बाद आखिरकार विज्ञानियों ने “पानी” को ईंधन की तरह इस्तेमाल में लाने के लिए पहली हाईड्रोजन बस बनाई. हालांकि, ये बस अभी ट्रायल  तौर पर चालू की गई है और सफलता मिलने के बाद इसको हर जगह इस्तेमाल में लाया जाएगा.

यहाँ लिया जायेगा ट्रायल

आपको हम बता दें कि फिलहाल इस बस को फरीदाबाद स्थित इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के अनुसंधान एवं विकास केंद्र में विकसित किया गया है. जिसके अनुसार अभी फिलहाल 2 साल तक इस बस का ट्रायल लिया जाएगा ताकि बस की ड्यूरेबिलिटी और एफिशिएंसी को मापा जा सके. अगर 2 साल के बाद बस को सफलता मिली तो इसकी कमर्शियल दिशा तय की जाएगी. इस ट्रायल के चलते पानी वाली बस को फिलहाल फरीदाबाद के सेक्टर 13 स्थित सेंट्रल से दिल्ली के द्वारका स्थित कुछ जगहों पर चलाया जाएगा. इस अनुसार फरीदाबाद से लेकर द्वारका की यह दूरी तकरीबन 52 किलोमीटर है. इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन अनुसंधान के अनुसार इन दोनों जगह पर ही हाइड्रोजन फिलिंग स्टेशन बने हुए हैं.

आपको हम बता दें कि इस पर्स को तैयार करने में टाटा मोटर्स के इलावा डिपार्टमेंट ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च और मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी का आर्थिक सहयोग मिला है.

ऐसे बनता है पानी से ईंधन

पेट्रोल और डीजल से वाहन चलाने वालों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि पानी भी वाहनों को चलाने के काम आ सकता है. साइंस के अनुसार पानी दो एटम यानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मेल से बनता है. जिसको इलेक्ट्रो लाईसिस तकनीक के अनुसार अलग अलग कर दिया जाता है. इसके बाद बची हुई हाइड्रोजन गैस को सिलेंडर में स्टोर करके हाइड्रोजन फिलिंग स्टेशन पर भेज दिया जाता है और यही से हाइड्रोजन को बसों में इस्तेमाल किया जाएगा.

2005 में हुई थी प्रोजेक्ट की शुरुआत

मेरी जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार ने इस प्रोजेक्ट की शुरुआत साल 2005 में ही कर दी थी. इसके लिए मुख्य एजेंसी इंडियन ऑयल रिसर्च सेंटर कब बनाया गया था. शुरुआती दौर में सीएनजी में 2% हाइड्रोजन मिलाया गया मगर धीरे-धीरे इसकी मात्रा को बढ़ाकर 100% कर दिया गया. इस इंजन में सिर्फ पानी एग्जॉस्ट होगा. फिलहाल इस बस का मूल्य इसके ट्रायल पूरा होने के बाद उसके टिकाऊ और सक्षम क्षमता पर निर्भर करेगा.

बहरहाल, ये बात तो साफ़ तय है कि हाइड्रोजन की इस तकनीक की सफलता के बाद आम आदमी को खासी राहत मिलेगी. क्यूंकि, पेट्रोल और डीजल की कीमतों के लगातार बढने के कारण कई बार आम इंसान पैसे बचाने के लिए पैदल चलना ही बेहतर समझ लेता था. मगर पानी से चलने वाली इस बस की कामयाबी के बाद कोई भी व्यक्ति गाड़ियाँ खरीदने से पहले एक बार भी नहीं सोचेगा.

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