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भारत के इस अनोखे गाँव की परम्परा जानकर हो जायेंगे हैरान, होती है मृत बच्चों की शादी

दुनिया केहर समाज में शादियों का ख़ास महत्व होता है। मानव सभ्यता के साथ ही यह नियम भी बनाया गया है कि शादी के बाद क़ानूनी तौर पर एक स्त्री और पुरुष एक साथ रह सकते हैं। शादी के बाद दोनों के सम्बन्ध से वंशवृद्धि में भी मदद मिलती है। भारत में बिना शादी किये साथ रहना किसी भयंकर पाप से कम नहीं माना जाता है। इसलिए यहाँ शादी का बहुत ज्यादा महत्व होता है। एक निश्चित उम्र पार कर जाने के बाद हर व्यक्ति की शादी होती है।

हर माँ-बाप की इच्छा होती है कि उसका बेटी या बेटी शादी करके घर बसाये और ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवन यापन करे। लेकिन हर माँ बाप की यह इच्छा पूरी नहीं हो पाती है। कुछ बदनसीब माँ-बाप के बेटे शादी के पवित्र बंधन में बंधने से पहले ही इस दुनिया को अलविदा कह देते हैं। ऐसे में माँ-बाप के दिल पर क्या बीतती है, इसके बारे में बताने की जरुरत नहीं है। आप जो जानते ही हैं कि भारत एक पारम्परिक देश है और यहाँ तरह-तरह की परम्परा देखने को मिलती है।

आज हम आपको एक ऐसे अनोखे गाँव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहाँ सदियों से एक अनोखी परम्परा निभाई जाती है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर शहर के नजदीक ही एक नटों का पुराना गाँव हैं। ये लोग रस्सी पर चलने की कलाबाजी दिखाने में माहिर हैं। इस गाँव में एक अनोखी परम्परा का पालन आज भी किया जाता है। इस गाँव के लोग अपने मरे हुए बच्चों का विवाह जीवित लोगों की तरह करते हैं। इन लोगों को मानना है कि ऐसा करने से उनके बच्चों की आत्मा को शांति मिलेगी और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।

मृत पुत्र और पुत्री के परिवार वाले अपने सालों पहले मरे हुए बच्चों के विवाह आपस में तय करते हैं। वर और वधु दोनों की ही मौत हो चुकी होती है। दोनों के प्रतिक के रूप में गुड्डे और गुड़िया बनाये जाते हैं और दोनों की धूम-धाम से सरे रीति-रिवाजों के साथ शादी की जाती है। विवाह में पूरा समाज इकठ्ठा होता है और सभी नाचते-गाते भी हैं। यहाँ तक की इस आयोजन में प्रीति भोज तक किया जाता है। नटों के इस समुदाय के अनुसार ऐसा करने के बाद मृतक को दूसरी दुनिया में सभी कष्टों से मुक्ति मिल गयी होगी।

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